Friday, June 25, 2010

Nisha Nimantran - Aao so jayein, mar jayein - Dr. Bachchan

आओ, सो जाएँ, मर जाएँ!

स्वप्न-लोक से हम निर्वासित,
कब से गृह सुख को लालायित,
आओ, निद्रा पथ से छिपकर हम अपने घर जाएँ!
आओ, सो जाएँ, मर जाएँ!

मौन रहो, मुख से मत बोलो,
अपना यह मधुकोष न खोलो,
भय है कहीं हृदय के मेरे घाव न ये भर जाएँ!
आओ, सो जाएँ, मर जाएँ!

आँसू भी न बहाएँगे हम,
जग से क्या ले जाएँगे हम?-
यदि निर्धनों के अंतिम धन ये जल कण भी झर जाएँ!
आओ, सो जाएँ, मर जाएँ!

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