Friday, June 25, 2010

Nisha Nimantran - Beet chali sandhya ki vela - Dr. Bachchan

बीत चली संध्‍या की वेला!

धुंधली प्रति पल पड़नेवाली
एक रेख में सिमटी लाली
कहती है, समाप्‍त होता है सतरंगे बादल का मेला!
बीत चली संध्‍या की वेला!

नभ में कुछ द्युतिहीन सितारे
मांग रहे हैं हाथ पसारे-
'रजनी आए, रवि किरणों से हमने है दिन भर दुख झेला!
बीत चली संध्‍या की वेला!

अंतरिक्ष में आकुल-आतुर,
कभी इधर उड़, कभी उधर उड़,
पंथ नीड़ का खोज रहा है पिछड़ा पंछी एक- अकेला!
बीत चली संध्‍या की वेला!

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